मंगलवार, 30 नवंबर 2010

आपका अनुभव

हमारे यहाँ Special Olympic Games हाल ही में सम्पन्न हुए हैं, यहाँ पधारे सभी सम्माननीय शिक्षकों में से एक शिक्षक श्री सोमेश्र्वर शर्मा ने मनोविकास के कार्यों एवं Staff Members के व्यवहार से प्रभावित होकर अपने अनुभव को कुछ इस प्रकार से व्यक्त कियाः-

"हमें है आस,
हमारा भी हो विकास,
कहते हैं ये बच्चे,
इनके विकास का यह प्रयास,
पूरा कर रहा है मयास,
ये बच्चे ही तो, बच्चे हैं
बाकी सबसे अच्छे हैं,
ना कपट न इनमें छल है
इसलिये ये स्पशल हैं,
भगवान भी मनुष्यों की परीक्षा लेता है,
और स्पेशल बच्चे स्पेशल पालक को ही देता है,
धन्य हैं वे लोग जो इनके माता-पिता हैं,
सच्ची मानवता का मैडल इन्होंने ही तो जीता है,
हम भी ट्रेनिंग ले कर होगए कोच,
और बदल गई हमारी भी सोच,
जो घर के मुखिया जैसे रहते और देते सदा उचित परामर्श, वे हैं मनोविकास के फ़ादर थॉमस,
हम पर है राजेन्द्र सर का साया मयास और स्पेशल बच्चों के बारे में इन्होंने अच्छा बताया,
स्पेशल बच्चों के स्पेशल कोच बनो, बिना झिझक-बिना डर,
ये कहते हैं श्री मानवेन्द्र सर,
एक और सर हमारे बहुत भारी हैं,
वो दुबेजी अच्छा लेब खिलाते हम उनके आभारी हैं
इस ट्रेनिंग रुपी पेड़ का एक विशाल तना है
वो तना ज़ुबेर सर के नाम से बना है,
ये तना सेवा और अनुभव से हुआ है पक्का,
वक्त के थपेड़े इनको क्या देंगे धक्का,
खेल के बारे में जिनका नॉलेज कमाल है
वे हैं गोविंन्द सर और मनोज बाकलीवाल हैं
अजीज सर ने भी गर्मी में ख़ूब
तपाया है
और हमें दौड़-दौड़ा करथकाया है,
पूरी टीम ने ही अच्छा सीखाया है
मानवता और खेल का नया मार्ग दिखाया है
चार दिनों तक जिसने सबका दिल जीता है,

वो जिलास्तरीय खेल प्रतियोगिता है
चार दिन बाद जब हम घर जाऐंगे
और जब भी अपने सामने सामने स्पेशल बच्चों को पायेंगे तो, इनको अपना अधिकार दिलाऐंगे
और समाज की मुख्यधारा में लायेंगे
ये जो भी हैं, वो इनका हक़ है
और सामान्य जीवन जीना भी इनका हक है"
--सोमेश्र्वर शर्मा

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